भारत सरकार मौसम पर नियंत्रण के लिए अब एक बड़ा प्रयोग करने जा रही है। बड़े मौक़ों पर बारिश रोकना हो या फिर पहाड़ों में बदल फटने की संभावना पर उस घटना को रोकना हो, यह सब कुछ संभव हो पाएगा तकनीक के ज़रिए। मिशन मौसम के तहत मोदी सरकार ने एक अहम फ़ैसला लिया है। मोदी कैबिनेट ने इस मिशन के लिए 2000 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी है.
अक्सर देखा जाता है कि बड़े बड़े कार्यक्रमों में बारिश रंग में भंग डाल देती है. बारिश की वजह से कार्यक्रम में लोग बारिश की बूँदों से बचते नज़र आते हैं. अब मोदी सरकार ऐसी तकनीक पर काम कर रही है, जहां अनचाही बारिश को ताला जा सकेगा. बारिश हो या ना हो ये तो मौसम पर निर्भर करता है लेकिन वैज्ञानिकों ने ऐसी नई तकनीक विकसित की है, जिससे अगर किसी जगह भारी बारिश होने का अनुमान है तो उसे रोका जा सकता है.
कैसे काम करेगी ये तकनीक?
मान लीजिए दिल्ली में बाढ़ के हालात हैं और अधिक बारिश की ज़रूरत नहीं है, तो इस तकनीक के ज़रिए बारिश को टाला जा सकता है. इसके अलावा किसी इलाक़े में सूखे जैसे हालात हैं तो वहाँ बादलों को कृत्रिम रूप से सप्रेस कर बारिश कराई जा सकती है. इस तकनीक के ज़रिए बारिश को रोकना और कराना संभव हो पाएगा.
इस तकनीक के ज़रिए अगर एक जगह काफ़ी बदल हैं और बारिश को टालना है तो एक ख़ास प्रेशर तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इसी तरह अगर एक जगह बादल हैं लेकिन उतने बादल नहीं जिससे बारिश हो जाए. ऐसे हालात में बादल में सीडिंग की जाएगी जिसे क्लाउड सीडिंग कहते हैं. क्लाउड सीडिंग के ज़रिए तापमान बढ़ा दिया जाता है ताकि तुरंत बारिश हो जाए. लेकिन ये तकनीक वहीं काम करेगी जहां थोड़े बहुत बदल हों, ऐसा नहीं है कि जहां बादल ही नहीं हैं वहाँ बारिश कराई जा सके.
कब तक विकसित हो जाएगी ये तकनीक
रिपोर्ट्स के मुताबिक़ देश में अगले 18 महीने में इस तकनीक को विकसित कर लिया जाएगा। इसके लिए क्लाउड चैम्बर बनाया जाएगा। सरकार की ये तैयारियाँ मिशन मौसम के तहत हो रही हैं। मोदी कैबिनेट ने 2000 करोड़ रुपये की लागत से इस मिशन को लॉंच करने का फ़ैसला लिया है. इस मिशन को दो चरणों में लॉंच किया जाएगा. 5 साल में इसे पूरा करने का लक्ष्य है.